लेखनी कहानी -17-Oct-2022... हमारी दिवाली...
अतुल.... पिंकी.... जल्दी करो बेटा...।
हां मम्मी बस दो मिनट...।
पिछले दस मिनट से ये ही सुन रहीं हूँ...। बेटा पूजा का समय है गया हैं...।
यस मम्मी.... आई नो... जस्ट टू मिनट्स...।
कुछ देर बाद अतुल और उसकी छोटी बहन पिंकी बाहर हॉल में आए... जहाँ उनकी मम्मी वैशाली... दिवाली की पूजा की सारी तैयारियां करके उन दोनों का इंतजार कर रहीं थीं..। उन दोनों के आते ही तीनों ने मिलकर पूरे विधी विधान से दिपावली की... लक्ष्मी नारायण की पूजा अर्चना की...। तकरीबन आधे घंटे की पूजा के बाद दोनों भाई बहन ने अपनी मम्मी का आशीर्वाद लिया और कहा :- मम्मी चले.... अपनी दिवाली मनाने...।
हाँ बेटा... तुम दोनों पहले ये मिठाई खाओ मैं तैयारियां करके आतीं हूँ..।
अरे मम्मी... हमने सब कर दिया..। आप बस अपनी एक्टिवा निकालो हम दोनों फटाफट सब लेकर आतें हैं..।
वाह... क्या बात हैं... तुम दोनों तो बहुत उत्साहित हो...।
यस... मम्मी... हमें बहुत मजा आता हैं... वहाँ जाकर मस्ती करना.. पटाखे जलाना.. ..।
हां मम्मी... जैसे हम इंतजार कर रहे हैं वहां जाने का मेरे दोस्त भी तो मेरी राह देख रहे होंगे ना..! आप बस जल्दी से बाहर चलिए... चल छुटकी हम सब सामान लेकर आतें हैं...।
दोनों बच्चे भागकर अपने कमरे में गए... और वहाँ से पटाखों से भरी हुई एक बड़ी सी पोलोथिन लेकर बाहर आए... उसे हॉल में रखकर फिर दोनों किचन की तरफ़ भागे... वहाँ से चोकलेट के ,मिठाई के और खाने के कुछ डिब्बे लेकर बाहर आए...। फिर सारा सामान लेकर घर से बाहर आए...। उनकी मम्मी ने कुछ सामान एक्टिवा की डिक्की में रखा... कुछ आगे की तरफ़... । इतने में मोहिनी..... उनके पड़ोस में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला... उनके घर आई...। दोनों बच्चे उनको दादी कहकर बुलाते थे..। दोनों बच्चे उनके पास गए और उनका आशीर्वाद लिया...। वैशाली ने भी उनके पांव छूकर आशीर्वाद लिया ओर कहा :- थैंक्यू मम्मी.... आप हर बार बिना बोले हमारी मदद करने आ जातें हो...।
अरे बेटी... इसमें थैंक्यू कैसा.... तुम सब इतना अच्छा काम करने जातें हो... तो क्या मैं थोड़ी देर... तुम्हारे घर की रखवाली नहीं कर सकतीं...? ओर फिर तुम मेरे पड़ोसी थोड़ी ना हो... तुम सब तो मेरे अपने ही हो...।
दादी.... इसी बात पर ये चोकलेट खाओ....।
हाहाहा.... बेटा... तेरी दादी के सारे दांत पहले ही जड़ चुके हैं... चाकलेट कैसे खाऊंगी...!! मेरी तरफ़ से तुम दोनों खा लो...।
मम्मी... आप इनकी शरारत समझी नहीं... अरे ये तो इसलिए ही आपको बोल रहे हैं ताकि इनको खाने को मिले...।
हाहाहा... मैं सब समझती हूँ बेटी... लेकिन इनकी तो उम्र हैं.. खाने दो...। अभी तुम सब निश्चित होकर जाओ... मैं भीतर थोड़ा आराम कर लेती हूँ..।
जी मम्मी...।
वैशाली अपने दोनों बच्चों को लेकर अपनी सोसाइटी के ठीक पीछे की तरफ़ बनी एक कच्ची बस्ती में गई...। जहाँ कान्ता का परिवार भी रहता था..।
कान्ता वैशाली के घर साफ़- सफाई करने आतीं थीं...। कभी कभी वो अपने बेटे विजू को भी साथ लेकर आतीं थीं...। इसी दौरान अतुल, विजू और पिंकी मिले और साथ खेलने लगे...।कुछ सालों पहले वैशाली के पति की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थीं...। उनकी मृत्यु के बाद उनकी नौकरी वैशाली को दी गई...।
कान्ता और मोहिनी की मदद से ही उसने अपने बच्चों की अच्छे से परवरिश की थीं..। पिछले कुछ सालों से वैशाली हर साल दिवाली का त्यौहार इन्ही लोगों के साथ मनाती थीं..। उसके दोनों बच्चे तो सवेरे से इंतजार करते हैं इस पल का...।
वैशाली का मानना था की दिवाली की पूजा के बाद घर को खाली नहीं छोड़ते हैं इसलिए मोहिनी हर वर्ष उस दौरान उनके घर की सार संभाल करतीं थीं...।
कुछ मिनटों में ही वैशाली कान्ता के घर पहुंची...। एक बड़ी बहन की तरह वैशाली ने कान्ता को गले से लगाकर दिवाली की शुभकामनाएं दी.. और मिठाई का डिब्बा देते हुवे मुंह मीठा करवाया..। अतुल ने चोकलेट का एक डिब्बा निकालकर विजू को दिया और उसे गले से लगाकर दिवाली विश किया..। कुछ देर में तीनों बच्चे बस्ती के दूसरे बच्चों के साथ पटाखे जलाने के लिए घर से बाहर आ गए...। तकरीबन पन्द्रह बीस बच्चे थे उस बस्ती में... सभी बच्चों के कुछ पेरेंट्स भी उनके साथ उनकी खुशी में शामिल हो गए..। सभी बस्ती वाले वैशाली के साथ बिल्कुल परिवार की तरह ही रहते थे..। कुछ घंटो की मस्ती मजाक और पटाखों की आतिशबाजी के बाद सभी बस्ती वालों ने अपने अपने घर से बनाया कुछ खाने पीने का सामान लेकर कान्ता के घर के बाहर बने बरामदे में आए...। वैशाली ने भी अपने घर से लाया हुआ खाना और मिठाई चाकलेट सभी को दिया...। फिर सभी ने साथ में बैठकर खाना खाया...। उस वक्त वहाँ का माहौल बिल्कुल ऐसा था... जैसा एक सयुंक्त परिवार का होता हैं...। हंसी मजाक... मस्ती चुटकुले... और वार्तालाप के साथ सभी ने खाना खाया.. । फिर सभी से विदा लेकर कान्ता, अतुल और पिंकी अपने घर आ गए.. ।
कपड़े बदलकर दोनों भाई बहन अपने कमरे में सोने चले गए...। अब उन्हें इंतजार था... अगले साल की दिवाली का...।
वैशाली चाहतीं तो थीं की हर त्यौहार इसी तरह उन सभी के साथ मनाए... लेकिन घर, बच्चों और काम की व्यवस्ता की वजह से ऐसा मुमकिन नहीं था... इसलिए हर साल दिवाली का ये त्यौहार... रोशनी और आतिशबाजी का ये त्यौहार इसी तरह से मनाती थीं...।
सच तो यह हैं की असल में दिपावली मनाने का सही और सच्चा तरीका ऐसा ही हैं...। अगर हम सब इस बात को समझ पाएं तो यकीन मानिए एक अलग ही खुशी मिलेगी...।
Shnaya
21-Oct-2022 08:27 PM
शानदार
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Supriya Pathak
20-Oct-2022 01:03 AM
Bahut khoob 🙏🌺
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आँचल सोनी 'हिया'
19-Oct-2022 11:50 PM
Bahut sunder likha aapne sir 🌸👌
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